नवभारत टाइम्स | Updated: Mar 8, 2018, 08:00AM IST
एनबीटी न्यूज, नोएडा
संविधान की आठवीं अनुसूची में भोजपुरी और राजस्थानी भाषा को शामिल करने की घोषणा दिसंबर 2016 में हुई थी। इसी बीच अब मैथिली भाषा है या इसकी कोई लिपि भी है, इसको लेकर एक नया विवाद शुरू हो गया है। यह विवाद केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा में दिए गए एक जवाब के बाद शुरू हुआ है। इस संबंध में बीजेपी से निष्कासित सांसद कीर्ति आजाद ने सवाल पूछा था। मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि मैथिली मौखिक भाषा है, इसके लिए कोई आधिकारिक सूचना और पाठ्य पुस्तकें देवनागरी लिपि में नहीं लिखी गई हैं। इस भाषा के प्रचार-प्रसार की कोई योजना सरकार की ओर से नहीं है। इस पर सांसद कीर्ति आजाद ने इसे भाषा का अपमान बताया। इसी मुद्दे पर नोएडा में रह रहे मैथिली भाषा बोलने वालों ने मुखर होकर अपनी बात रखी।
हिंदी के साथ-साथ जो भी क्षेत्रीय भाषाएं हैं उनका पूर्ण विकास सरकार को करना चाहिए। वर्षों तक अंग्रेजी शासन के कारण हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं की घोर उपेक्षा हुई है। वर्तमान केंद्र सरकार को पूर्व सरकारों की नीतियों में बदलाव लाते हुए हिंदी और मैथिली, भोजपुरी, अवधी, मगही, अंगिका सहित अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के विकास की गति को तेज करना चाहिए। -मुन्ना कुमार शर्मा, राष्ट्रीय महासचिव, हिंदू महासभा
पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यकाल में इसे आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था। सिविल सर्विसेज में भी इस भाषा को मान्यता दी गई है। इसमें हर साल लगभग 10 बच्चे चुन कर आ रहे हैं। ऐसे में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा इसे नकार देना मैथिलीभाषियों का अपमान है। मैथिली समाज के साथ संसद के सामने प्रदर्शन कर विरोध जताएंगे।
दीपक झा, संरक्षक, विश्व मैथिली संघ
सरकार का इस तरह का जवाब किन परिस्थितियों में आया हम उस पर जाना नहीं चाहेंगे, लेकिन मैथिली की अपनी लिपि अभी भी प्रचलित है। हालांकि, मैथिली को देवनागरी में भी लिखा जाता रहा है। तमाम जगहों पर मैथिली लिपि में लिखने का विकल्प आज भी है। बिहार बोर्ड की परीक्षा में भी देवनागरी से मैथिली लिपि में लिखने से संबंधित सवाल पूछे जाते हैं। दरभंगा, मधुबनी, मोतिहारी, मधेपुरा समेत कई क्षेत्रों में बोली जाती है। यह मिथिलांचल की मुख्य भाषा है। राजन श्रीवास्तव, समाजसेवी
केंद्र सरकार द्वारा मैथिली भाषा को नकारा जाना सरासर गलत और दुर्भाग्यपूर्ण है। यह मैथिलीभाषियों का बड़ा अपमान है। पूर्व में बीजेपी शासन में ही इसे आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था। इस भाषा में कई ग्रंथ लिखे जा चुके हैं। ऐसे में सरकार का इसे मौखिक भाषा कहना गलत है। सरकार को क्षेत्रीय भाषाओं के विकास में काम करना चाहिए न कि इस तरह की बयानबाजी कर भावनाएं आहत करें। -आलोक वत्स, अध्यक्ष, प्रवासी महासंघ
(Source : https://navbharattimes.indiatimes.com/state/uttar-pradesh/noida/it-is-an-insult-to-those-who-speak-maithili/articleshow/63207564.cms)
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