नवभारत टाइम्स | Updated: Mar 8, 2018, 08:00AM IST
प्रमुख संवाददाता, टीएचए
मैथिली केवल मौखिक भाषा है या इसकी लिपि भी है, इस मुद्दे पर विवाद बढ़ गया है। मानव संसाधन मंत्रालय ने इसे मौखिक भाषा कहते हुए इसके प्रचार-प्रसार के लिए किसी तरह की योजना नहीं होने की बात कही है। इसके बाद मिथिलांचल समाज के लोग आहत महसूस कर रहे हैं। टीएचए के इंदिरापुरम, वैशाली और वसुंधरा में काफी संख्या में रहने वाले मिथिलांचल वासी इस मामले में बेबाकी से अपनी राय रख रहे हैं। उनका कहना है कि अभी मिथिलाक्षर लिपि जीवित है। विवाह और उपनयन संस्कार जैसे बड़े आयोजनों में मिथिलाक्षर में ही निमंत्रण-पत्र लिखे जाते हैं।
साजिश के तहत हो रहा सब
अखिल भारतीय मिथिला संघ के अध्यक्ष विजयचंद्र झा का कहना है कि साजिश के तहत मैथिली को विभाजित करने की कोशिश हो रही है। मिथिला क्षेत्र को तोड़ने के लिए पहले क्षेत्र को अंगिका और बजिका में बांटने की कोशिश हुई, जिसमें भागलपुर की तरफ जो भाषा बोली जाती है, उसे अंगिका और मुजफ्फरपुर की तरफ जो भाषा बोली जाती है, उसे बजिका नाम दिया गया। अभी मिथिलाक्षर लिपि जीवित है। विवाह और उपनयन संस्कार जैसे बड़े आयोजनों में मिथिलाक्षर में ही निमंत्रण-पत्र लिखे जाते हैं। मिथिलाक्षर को जीवित करने के लिए रिसर्च जारी है और मिथिलांचलवासी इसमें जुटे हुए हैं। पिछले साल 24 दिसंबर को मिथिलांचलवासियों ने तालकटोरा स्टेडियम में स्वर्ण जयंती समारोह मनाया था।
मैथिली का सम्मान जरूरी
मैथिली भोजपुरी अकादमी के सदस्य डॉ़ कैलाश कुमार मिश्रा बताते हैं कि मैथिली प्राचीन भाषा है। इसकी अपनी लिपि है, जिसे तिरहुता कहा जाता है। यह न केवल भारत, बल्कि नेपाल में भी बोली जाती है। नेपाल के मधेश में हुए चुनाव में 120 में से 88 प्रतिनिधियों ने मैथिली भाषा में ही शपथ ग्रहण की है। वैष्णव कवि विद्यापति ठाकुर ने अपनी पदावलियों को देसिल बयना अर्थला मैथिली लिपि में लिखा है। उनसे पहले ज्योतेश्वर ठाकुर ने भी मैथिली में लिखा है। कई अंतरराष्ट्रीय भाषाविदों ने मैथिली को श्रेष्ठ भाषा के रूप में रखा है। बाबा नागार्जुन मूल रूप से मैथिली में 'यात्री' नाम से लिखते थे और उन्हें साहित्य अकादमी मैथिली के लिए ही मिला था, इसलिए यह कहना कि मैथिली की अपनी लिपि नहीं है, भ्रांतिपूर्ण भावनाओं को जन्म देता है। मैथिली का किसी भाषा से दुराग्रह नहीं है। सभी को मैथिली की अस्मिता का सम्मान करना चाहिए।
आगे बढ़ाने की है जरूरत
मिथिला-मैथिली अभियान से जुड़े शरद झा मानते हैं कि मैथिली भाषा मिथिलाक्षर/तिरहुताक्षर लिपि में लिखी जाती रही है, बाद में देवनागरी लिपि में भी। मिथिलाक्षर/तिरहुताक्षर इतनी पुरानी लिपि है कि मैथिली के अलावा और भी कई क्षेत्रीय भाषाएं इसी लिपि से संपोषित होती रही हैं। साहित्य अकादमी से मान्यता प्राप्त, अष्टम अनुसूची में शामिल इस भाषा को और मजबूती देने व आगे बढ़ाने की जरूरत है। इसके अलावा इंदिरापुरम के रहने वाले घनश्याम झा बताते हैं कि मिथिलांचल से प्रकाशित अखबार का कोई खरीदार नहीं, मैथिली सिर्फ नेतागिरी की भाषा बनकर रह गई है। मिथिला के लोगों को मैथिली बोलने में शर्म आती है, अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाने वाले लोग अपने घर में भी मैथिली नहीं बोलते हैं।
Comments -
मैथिली बिहार के दरभंगा, मधुबनी जिले की भाषा है । मैथिली थोड़ी बहुत सहरसा और सुपौल जिले में भी बोली जाती है । जबकि अंगिका बिहार, झारखंड, प. बंगाल के २७ जिलों में बोली जाने वाली एक ऐसी भाषा है जिसका अस्तित्व वैदिक काल से ही है । बज्जिका भाषा भी प्राचीन बज्जी देश की भाषा रही है जिसको बोलने वाले मैथिली से ज्यादा हैं । एक साजिश के तहत अंगिका और बज्जिका को मैथिली बताकर मैथिली भाषा को सारी सरकारी संरक्षण दे दी गई है । यहाँ तक कि अंगिका और बज्जिका भाषी की करोड़ों भाषा भाषी की संख्या को मैथिली भाषी की संख्या बताकर अष्टम अनुसूची में स्थान दे दिया गया । यह अंगिका और बज्जिका के साथ घोर अन्याय है । जब कि बिहार की सर्वाधिक प्रचलित करोड़ों लोगो की भाषा अंगिका को भी संविधान की अष्टम अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए ।
(Source : https://navbharattimes.indiatimes.com/state/uttar-pradesh/ghaziabad/from-a-marriage-to-an-upanishads-invitation-letter-printed-in-a-mithila/articleshow/63206900.cms)
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.