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Saturday, 3 March 2018

गुरुग्राम में होली मिलन समारोहों में हिंदी, हरियाणवी के साथ भोजपुरी, अंगिका, मगही के गीतों के सुर गूंजे

मिलन समारोहों तक सिमटे फगुआ के गीत


Publish Date:Wed, 28 Feb 2018 05:58 PM (IST)

पूनम, गुरुग्राम

फागुन का महीना चढ़ते ही फिजा में होली के रंगीले और सुरीले गीत तैरने लगते थे। इनको स्थानीय भाषा में फाग या फगुआ गीत कहा जाता है। महीने भर इनकी महफिलें जमती थीं। शहरों में भी ढोल-मजीरे के साथ फगुआ के गीत गाए जाते थे, लेकिन समय की कमी, बदलती जीवनशैली और कई अन्य वजहों से शहरों की कौन कहे, गावों में भी यह परंपरा दम तोड़ रही है। लेकिन आंचलिक गायक दिल्ली एनसीआर में फगुआ के लोक गीतों का रंग भर रहे हैं। फगुनाहट का रंग शहरी संस्कृति में घोलकर गायकों ने पुरानी और नई रिवायतों को जोड़ने की कोशिश की है।

गुरुग्राम में होली मिलन समारोहों में हिंदी, हरियाणवी के साथ भोजपुरी, मैथिली, अंगिका, मगही के भोजपुरी गीतों के सुर रंगों के साथ गूंज रहे हैं। कार्यक्रमों से सिमटते जा रहे पारंपरिक होली गीतों को युवा लोक गायकों ने फिर से परिवार के बीच जोड़ने की कोशिश की है। लोक गायिका स्मिता ¨सह बताती हैं कि होली के लोक गायन में फूहड़ता को हटा दीजिए तो फिर फिल्मी गीतों से ज्यादा पसंद किया जाता है चाहे जोगीरा हो या फिर श्याम संग राधा के होली खेलने पर गाए गीत। यह त्योहार मस्ती है, भेद-भाव भूलने का है तो थोड़ी मस्ती भी हो जाती है। जीजा-साली, देवर -भाभी जैसे रिश्तों के रंग गीतों में आ जाते हैं। अश्लीलता नहीं होनी चाहिए।

लोक गायक साथी उमेश कहते हैं कि होली गीतों को सुनना लोगों को आज भी बहुत पसंद है। नई पीढ़ी के लोग भी जोगीरा और मधुर धुनों वाले फगुआ में आनंदित होते हैं। पुरानी लोक गायिका को जो रंग है, वह बरकरार रहे। राम खेले होरी लक्षुमण खेले होरी, लंका में रावण खेले होरी.। देवर भाभी के होली गीतों में चुहल है मगर सार्वजनिक मंचों का फायदा यह हुआ कि यहां फूहड़ गीतों के लिए जगह नहीं। हमलोग यहां ¨हदी गीत भी गाते हैं, हरियाणवी, भोजपुरी और मैथिली भी। सामूहिक गानों को भी पसंद किया जाता है।

लोक गायक रत्नेश तिवारी बताते हैं कि केवल मंच पर ही नहीं परिवारों में सहेजी जानी चाहिए, लोक गीतों की परंपरा। पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी को रास्ता दिखाए। हमलोग लोक गीत मिलकर घरों, समाज में, सामुदायिक भवनों में गाए। हर प्रदेश में होली गीतों की एक समृद्ध परंपरा है। कार्यक्रमों में हमारी कोशिश होती है कि ऐसा गाएं जो सबको भाए। दिलचस्प यह कि होली से पहले अधिसंख्य जगहों पर लोगों के ढोल, झाल के साथ फगुआ गीतों के गाने का रिवाज रहा है।

(Source - https://www.jagran.com/haryana/gurgaon-holi-geet-17593403.html )

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