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Sunday 29 October 2017

अंगिका के पारंपरिक गीतों में हमारी संस्कृति रचती-बसती है - नीलू

पारंपरिक गीतों को सहेजेंगी नीलू
Publish Date:Sun, 29 Oct 2017 12:34 AM (IST) | Updated Date:Sun, 29 Oct 2017 12:34 AM (IST)

खगड़िया। खगड़िया की बेटी 27 वर्षीय नीलू ने पारंपरिक गीतों को सहेजने का संकल्प लिया है। वह बिहार कोकिला शारदा सिन्हा की परंपरा को आगे बढ़ाना चाहती है। इस कार्य में कदम दर कदम उनका सहयोग गायक पति धीरजकांत कर रहे हैं। वह कहती हैं कि मैथिली और अंगिका के पारंपरिक गीतों में हमारी संस्कृति रचती-बसती है। इसे व्यापक पैमाने पर सहेजने की जरूरत है। फिलहाल दिल्ली में रह रही नीलू को जब भी मौका मिलता है, तो वह अंग और मिथिला आकर पारंपरिक गीतों को लयबद्ध करने में जुट जाती है। मन लायक मंच मिलने पर लोकगीतों की प्रस्तुति भी देती है।

गांव-घरों से मिली प्रेरणा

नीलू का पैतृक गांव खगड़िया जिले के शेर चकला पंचायत स्थित शेर है। नीलू की रुचि बचपन से ही गीत-संगीत में थी। वह जब गांव, मोहल्ले में मुंडन संस्कार, जनेऊ (उपनयन), विवाह आदि में महिलाओं को पारंपरिक गीत गाती सुनती थी, तो खुद को रोक नहीं पाती थी और सुर में सुर मिलाने लगती थी। उम्र बढ़ने के साथ-साथ उन्होंने संगीत की दुनिया में ही रचने-बसने का निर्णय लिया। नीलू ने प्रयाग संगीत समिति से संगीत में एमए किया है। अब वह जहां पारंपरिक गीतों को सहेज-संवारकर प्रस्तुति देती है, वहीं वर्ष 2018 में उनका एलबम 'बिना डोलिया कहार भौजी हम नै जैबे' नाम से आने वाला है। मालूम हो कि वर्ष 2007 में भागलपुर में एक गीत-संगीत प्रतियोगिता आयोजित हुई थी, जिसमें नीलू को लोकगीत खंड में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था।

नीलू का संदेश

आज लोकगीत के नाम पर जो अपसंस्कृति परोसी जा रही है वह मन को व्यथित करती है। न शब्द का और न ही सुर का ध्यान रखा जाता है। दरअसल, लोकगीतों में ग्रामीण भारत की आत्मा बसती है। जब हम गाते हैं- 'बिना डोलिया कहार भौजी हम नै जैबे' तो अंग क्षेत्र की खासियत, विशेषताएं सामने आ खड़ी होती है। वहीं जब मैथिली गीत ' माइ हे जोगी एक ढार छै अंगनमा मे' गाते हैं, तो मिथिला की मिठास सामने होती है।

(Source: http://www.jagran.com/bihar/khagaria-information-16930743.html)

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