भारतीय संविधान के द्वारा मान्यता प्राप्त बाईस भाषाओं में असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिन्दी, कश्मीरी, कन्नड़, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगू और उर्दू को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है। भारत दुनिया के उन अनूठे देशों में से एक है, जहाँ भाषाओं की विविधता की विरासत है। पर अब तक अंगिका भाषा को उसका वाजिब हक नहीं मिल पाया है।
प्राचीन भारत के सोलह जनपदों में अंग एक प्रमुख जनपद था और जिसकी भाषा आदिकाल से अंगिका है। इस भाषा की लगातार उपेक्षा की जा रही है। हद तो तब हो गयी है जब एनसीईआरटी की पुस्तक में अंग क्षेत्र को भागलपुर और मुंगेर को मिथिला का क्षेत्र बताया गया है। इसे लेकर संघर्ष तेज हो गया है। एनसीईआरटी की किताब में अंग क्षेत्र भागलपुर को भी मैथिली बोलने वाला क्षेत्र बताया गया है। किताब में लिखा गया है कि भागलपुर के साथ मुंगेर और बिहार से सटे झारखंड में भी मैथिली बोली जाती है। सीमांचल के इलाके किशनगंज, कटिहार व मधेपुरा को भी मैथिली बोलने और समझने वाला क्षेत्र मैथिली प्रवेशिका किताब में बताया गया है।
इस क्षेत्र के प्रबुद्ध संजय कुमार बताते हैं कि चार साल पहले भागलपुर के हवाई अड्डा मैदान में एनडीए प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव प्रचार करने पहुंचे पीएम ने जैसे ही अंगिका भाषा में तोरहरा सिनी क नमस्कार करै छियै… कहा, लोगों का उत्साह दोगुना हो गया। डेढ़ साल के अंदर यह दूसरा मौका था जब पीएम भागलपुर पहुंचे थे। इससे पहले वह लोकसभा चुनाव में प्रचार के लिए भागलपुर पहुंचे थे। उस वक्त भी उन्होंने इसी तरह अंगिका में संबोधन शुरू कर यहां के लोगों का दिल जीत लिया था लेकिन एनसीईआरटी में बैठे लोगों ने अंग क्षेत्र के लोगों और प्रधानमंत्री की इस भावना को ठेस पहुंचाते हुए यह कुकृत्य किया। इसके विरोध में लगातार लोग आंदोलित हैं।
एनसीईआरटी की गलती और अंग क्षेत्र का विरोध
इस फैसले के खिलाफ सभी आंदोलनरत हैं। इस त्रुटि को सुधारने के लिए अंग जन गण के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.सुधीर मंडल ने एनसीईआरटी के निदेशक चंद्रपाल सिंह को पत्र लिखकर इसे सुधारने की अपील की है। डॉ मंडल ने अपने पत्र में कहा है कि
बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के लगभग 26 जिलों में अंगिका भाषा बोली जाती है, जबकि मैथिली भाषा बिहार के सिर्फ दो जिलों में प्रमुखता से बोली जाती है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि एनसीईआरटी द्वारा प्रकाशित प्रवेशिका की किताब में देश भर की 104 भाषाओं के बारे में जानकारी दी गई है, लेकिन अंगिका भाषा को इसमें शामिल नहीं किया गया है। इसके बजाय अंग क्षेत्र को मैथिल क्षेत्र और यहां की भाषा को मैथिली बताया गया है, जो पूरी तरह से अनुचित और गलत है। अंतत डॉ. मंडल ने आग्रह किया है कि अंग क्षेत्र को मैथिल क्षेत्र और यहां की भाषा को मैथिली बताने वाली त्रुटि को जल्द से जल्द सुधारते हुए उचित तथ्यों के साथ किताबों को प्रकाशित किया जाए।
भारतीय संविधान के द्वारा मान्यता प्राप्त बाईस भाषाओं में असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिन्दी, कश्मीरी, कन्नड़, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगू और उर्दू को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है। भारत दुनिया के उन अनूठे देशों में से एक है, जहाँ भाषाओं की विविधता की विरासत है। भारत के संविधान ने 22 आधिकारिक भाषाओं को मान्यता दी है। बहुभाषावाद भारत में जीवन का तरीका है क्योंकि देश के विभिन्न हिस्सों में लोग जन्म से ही एक से अधिक भाषाएँ बोलते हैं और अपने जीवनकाल में अतिरिक्त भाषाएँ सीखते हैं। औपनिवेशिक शासन के दौरान जॉर्ज ए. ग्रियर्सन द्वारा 1894 से 1928 के बीच पहला भाषाई सर्वेक्षण किया गया था, जिसमें 179 भाषाओं और 544 बोलियों की पहचान की गई थी। प्रशिक्षित भाषाविदों की कमी के कारण इस सर्वेक्षण में कई खामियाँ थीं।
स्वतंत्रता के बाद मैसूर स्थित केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआईएल) को भाषाओं का गहन सर्वेक्षण करने का काम सौंपा गया था। हालांकि यह अभी भी अधूरा है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (21 फरवरी) घोषित करने से पहले ही भारतीय संविधान के संस्थापकों ने मातृभाषा में शिक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी, जिससे बच्चे को अपनी पूर्ण क्षमता विकसित करने में मदद मिल सके।1956 में भारत में राज्यों का पुनर्गठन भाषाई सीमाओं के साथ किया गया था जिसकी अपनी लिपि थी। तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भाषाई विशेषताओं के आधार पर राज्यों के गठन और एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
अंगिका भाषा को संविधान में उचित स्थान क्यों नहीं मिला
अंगिका के साहित्यकार सुधीर कुमार प्रोग्रामर के अनुसार एनडीए व सुशासन की सरकार में भी दुनिया की प्राचीन भाषा अंगिका को वाजिब सम्मान व अधिकार से वंचित रखना अंग महाजनपद की प्रगति एवं उन्नति के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। अब तक सत्ताधारी नेता या दल के लोग एक-दूसरे पर पक्ष-विपक्ष का आरोप लगाकर अंग महाजनपद की लोकभाषा अंगिका को उनके हक-हकूक से वंचित रखा था, किंतु अब तो बिहार राज्य के साथ ही केंद्र में भी एक ही गठबंधन वाली सरकार है तब भी इस विषय पर अब तक कुछ नहीं हो पाया है। उम्मीद है कि जल्द ही इस ओर केंद्र और राज्य सरकार का ध्यान जाएगा और अंगिका भाषा को उसका वाजिब हक मिलेगा। (कुमार कृष्णन)
Source:
https://www.hindimilap.com/angika-language-should-get-its-due-rights/
Publication Date : मार्च 24, 2025


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