आज मेरा मन पलास हो गया
समस्तीपुर। नगर में बुधवार को विद्यापति परिषद द्वारा आयोजित विद्यापति पर्व समारोह में मिथिलाचंल की साहित्यक सामरिक इतिहास छाया रहा। वक्ताओं ने यहां की विभूतियों का खूब बखान किया। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी ने राजाजनक एवं मां जानकी से लेकिन मंडन मिश्र तक की महिमा का बखान किया। अपने उद्बोधन की शुरुआत करते हुए उन्होंने कहा कि पलास को फूलते हुए कभी देखा है। जो साहित्य से जुड़े हुए लोग हैं वे समझ रहे हैं कि पलास फूलता कब है और फिर उसका स्वरूप कैसा हो जाता है। आज आपने जिन शब्दों मेरा स्वागत किया उसके बाद मेरे मन के अंदर एक प्रतिक्रिया हुई, एक शब्द आया मेरा मन पलास हो गया। शायद मैं इसका अधिकारी नहीं हूं, लेकिन आपका यह स्नेह मेरे लिए बहुत मूल्यवान है बहुत महत्वपूर्ण है। मिथिलाचंल की यह पावन भूमि समस्तीपुर और उसमें विशेषकर विद्यापति समारोह में उपस्थित होना इसको मैं अपना सौभाग्य मानता हूं। उन्होंने कहा कि यह बात कोई मायने नहीं रखता है कि विद्यापति साख्य थे या शैव, सुगन या निर्गुण थे। विद्यापति जीवन, प्रेम, भक्ति और सौंदर्य के अमर गायक महाकवि थे। उनकी कविता में माधुर्य का जो अखंड स्वर प्रभावित होता है उसके मूल में मिथिला की प्राकृतिक सौंदर्य और मानवीय सौहार्द हैँ। उनका सौंदर्य रस सात्विक ज्योति का प्रकाश है जो ह्रदय को प्रफुल्लित कर देता है। महाकवि की प्रतिभा और सृजनकता ने उन्हें पूरे देश में लोक्रपिय बनाया है। उनकी रचनाएं बंगाल गीत गोविन्द और श्रीमदभागवत की तरह लोकप्रिय और आदरणीय है। उन्होंने कहा कि साहित्य और राजनीति का बड़ा अछ्वुत संबंध रहा है। दिनकर कहा करते थे राजनीति जब पद से भटकता तो साहित उसे सही दिशा देती है। दोनों में कोई मौलिक विरोधाभास नहीं है। दोनों का उद्देश्य आदर्श मनुष्य और आदर्श राष्ट्र का निर्माण है। उन्होंने अपनी कविता हम कितने वर्ष के लिए हो गए ये ¨जदगी है क्या, किसने कितने दिन बीता दिए कितने दिन शेष है ये ¨जदगी है क्या.. सुनाकर श्रोताओं को गदगद कर दिया।
हिमालय की तराई से गंगा तक मिथिलांचल : विस अध्यक्ष
समारोह को संबोधित करते हुए बिहार विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी ने कहा है हिमालय की तराई से गंगा किनारे तक का क्षेत्र मिथिलाचंल है। समस्तीपुर जिला चार भाषाओं का समागम स्थल है। यह चार संस्कृतियों से घिरा हुआ है। गंगा के पार मगही भाषा है। पड़ोसी वैशाली जिला में वज्जिका भाषा है। पूर्व क्षेत्र में अंगिका भाषा है। उत्तरी क्षेत्र में शुरू मैथिली बोली जाती है। हम अपने को मिथिलावासी कहने में गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। इसे सरैसा परगना के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने कहा कि विद्यापति शिव के अनन्य भक्त थे। माता गंगा के प्रति उनका अपार स्नेह था। मान्यता है कि विद्यापति के बुलाने पर पर माता गंगा उन्हें दर्शन देने विद्यापतिधाम पहुंची थी। भगवान शिव सेवक उगना के रूप में महाकवि विद्यापति की सहायता की थी। उन्होंने यहां के सामरिक विरासत पर भी प्रकाश डाला। यहां की कृषि पर चर्चा करते हुए कहा कि यहां की सब्जी नार्थ ईस्ट के कई राज्यों में जाती है। प्रत्येक दिन पचास ट्रक सब्जी यहां बाहर भेजी जाती है। यहां किसान मिट्टी पसीना नहीं अपना खून बहाते हैं। उन्होंने सरैसा के किसानों से तंबाकू की जगह वैकल्पिक खेती चुनने की अपील की। समारोज को पूर्व भूमि सुधार एवं राजस्व मंत्री मदन मोहन झा, जिला परिषद अध्यक्ष प्रेमलता, साहित्यकार बुद्विनाथ मिश्र, बैजनाथ चौधरी, बैजू आदि ने संबोधित किया। स्वागत भाषण प्रो. रमेश झा ने दिया। मंच संचालन कमलाकांत झा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन परिषद के अध्यक्ष रामनंद झा ने किया। कार्यक्रम में जिलाधिकारी प्रणव कुमार, एसपी दीपक रंजन, सहायक समाहर्ता अंशुल कुमार, एडीएम संजय कुमार उपाध्याय, जिला सूचना एवं जनसंपर्क पदाधिकारी बालमुकुंद प्रसाद, दल¨सहसराय डीएसपी संतोष कुमार, कल्याणपुर के पूर्व प्रमुख मो. इफ्तेखार अहमद, प्रो. एसएन मंदार, डा. चंदन कुमार, बलिराम शर्मा, रामबालक पासवान, प्रो. विजय कुमार शर्मा, संजीव पांडेय आदि मौजूद थे।
जिले में पांच साहित्यकारों को इस अवसर पर सम्मानित किया गया। इनमें डॉ. प्रफुल कुमार ¨सह मौन, डॉ. वासुकीनाथ झा, रामाश्रय ईश्वर संत, ईश्वर करुण तथा डॉ. अमलेन्दु शेखर को राज्यपाल के द्वारा सम्मानित किया गया। समारोह में विद्यापति परिषद के स्मारिका तथा डॉ. प्रफुल्ल कुमार ¨सह मौन द्वारा रचित सारस्वत अक्षरदीप को राज्यपाल के द्वारा लोकार्पित किया गया।
(http://www.jagran.com/bihar/samastipur-16811650.html)
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