By Prabhat Khabar | Updated Date: Dec 10 2017 10:10AM
पटना : कैथी लिपि में उपलब्ध ज्ञान की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए इस लिपि का संरक्षण बहुत आवश्यक है और इसके लिए भारत सरकार, बिहार सरकार एवं बुद्धिजीवियों को समेकित प्रयास करना होगा. भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर द्वारा पटना संग्रहालय सभागार में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए प्रो डॉ रत्नेश्वर मिश्र ने यह बात कही.
उन्होंने इतिहास के उद्धरणों से स्पष्ट किया कि आजादी के बाद की शासन व्यवस्था को इस दिशा में संवेदनशील होकर कार्य करना चाहिए. पूर्व आईएएस आनंद वर्द्धन सिन्हा ने कहा कि बिहार सरकार को एक ऐसा विभाग खोलना चाहिए जिसमें भोजपुरी, मगही, मैथिली, अंगिका, वज्जिका, सूरजापुरी भाषाओं और बोलियों को बचाने का प्रयास हो.
कैथी कायस्थों की लिपि नहीं : डॉ शिवशंकर
भाषा सत्र में मैथिली के डॉ शिव कुमार मिश्र ने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि कैथी कायस्थों की लिपि थी. मिथिला में ब्राह्मणों में कैथी लिखने की बहुत सुदृढ़ परंपरा थी. भोजपुरी के पृथ्वी राज सिंह और भगवती द्विवेदी ने कहा कि भिखारी ठाकुर और महेंदर मिसिर को समझने के लिए कैथी की ही जरूरत होती है. तुलसीदास ने रामचरितमानस कैथी में ही लिखी थी. वज्जिका के डॉ ध्रुव कुमार, मगही के उदय शंकर शर्मा ने क्षेत्र से संबंधित तथ्यों को रखा. पंडित भवनाथ झा ने कहा कि पिछले चार सौ वर्षों से कैथी में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक दस्तावेज मिलते हैं.
कैथी रिविजनल सर्वे में भी रही थी उपयोगी
समापन समारोह को संबोधित करते हुए पूर्व आईएएस चंद्रगुप्त अशोकवर्द्धन ने कहा कि बिहार का कैडस्टल सर्वे और रिविजनल सर्वे में कैथी बहुत उपयोगी रही थी. कैथी का उपयोग सेंशस शेड्युल में भी किया गया था और बिहार सरकार को विशेष उपाय कर कैथी में लिखित ग्रंथों एवं ज्ञान की परंपरा को बचाने का प्रयास करना चाहिए. केंद्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद के भाषा विशेषज्ञ प्रो पंचानन मोहंती ने कहा कि कैथी और अन्य देशी लिपियों की लिखावट की समानता पर अध्ययन शोध का विषय हो सकता है. धन्यवाद ज्ञापन देते हुए भारतीय भाषा संस्थान के डॉ नारायण चौधरी ने कहा कि उपलब्ध दस्तावेजों का डिजिटाईजेशन कर कंप्यूटर से ओसीआर बना कर नष्ट होने से बचाना है.
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कैथी लिपि के ज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए इसका संरक्षण जरूरी
Bhaskar News Network | Last Modified - Dec 10, 2017, 03:35 AM IST
कैथीलिपि बिहार की अपनी लिपि है, इसमें उपलब्ध ज्ञान की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए इस लिपि का संरक्षण जरूरी है। इसके लिए बिहार सरकार, केंद्र सरकार और बुद्धिजीवियों को मिलाकर प्रयास करना चाहिए। यह बातें शनिवार को पूर्व कुलपति और प्रसिद्ध विद्वान प्रो. डॉ. र|ेश्वर मिश्र ने कही। वह पटना म्यूजियम सभागार में भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर द्वारा कैथी लिपि पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में बोल रहे थे।
इसमें उन्होंने इतिहास के उद्धरणों से स्पष्ट किया कि आजादी के बाद की शासन व्यवस्था को इस दिशा में संवेदनशील होकर कार्य करना चाहिए। कार्यशाला में रिटायर्ड आईएएस आनंदवर्द्धन सिन्हा ने कहा कि बिहार सरकार को एक ऐसा उपभाग खोलना चाहिए जिसमें भोजपुरी, मगही, मैथिली, अंगिका, वज्जिका, सूरजापुरी सहित बिहार की सभी भाषाओं और बोलियों में रक्षित जमीन के दस्तावेज एवं सांस्कृतिक धरोहरों को बचाने का प्रयास हो। कार्यशाला में रिटायर्ड आईएएस अधिकारी चन्द्रगुप्त अशोकवर्द्धन ने कहा कि बिहार के कैडस्टल सर्वे समेत कई सर्वे में कैथी बहुत उपयोगी रही थी। कंेद्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद के भाषा विशेषज्ञ प्रो.पंचानन मोहंती ने कहा कि कैथी और अन्य देशी लिपियों की लिखावट की समानता पर अध्ययन किया जाना चाहिए। संयोजक भैरव लाल दास ने कहा कि कैथी लिपि के अवसान का मख्य कारण तत्कालीन अंग्रेजी शासन के अधिकारियों द्वारा लिए गए कुछ गलत निर्णय थे। भाषा सत्र में मैथिली के डॉ. शिव कुमार मिश्र ने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि कैथी कायस्थों की लिपि थी। मिथिला में ब्राह्मणों में कैथी लिखने की बहुत सुदृढ़ परंपरा थी।
मौके पर भोजपुरी भाषा के विद्वान पथ्वीराज सिंह, और भगवती द्विवेदी ने कहा कि भिखारी ठाकुर और महेन्दर मिसिर को समझने के लिए कैथी की ही आवश्यकता होती है। वज्जिका के डॉ. ध्रुव कुमार, मगही के उदय शंकर शर्मा ने क्षेत्र से संबंधित विभिन्न तथ्यों को रखा। कार्यशाला में पंडित भवनाथ झा ने कहा कि ईसाई मिशनरियों ने कैथी का उपयोग कर अपने धर्मग्रंथों को प्रकाशित करवाया। धन्यवाद ज्ञापन भारतीय भाषा संस्थान के डॉ. नारायण चौधरी ने किया। कार्यक्रम में प्रो. डॉ. नवल किशोर चौधरी, प्रो. वीरन्द्र झा, डॉ. अशोक सिन्हा, डॉ. सत्येन्द्र कुमार झा, ओम प्रकाश वर्मा, डॉ. किरण कुमारी, डॉ. अब्दुल रशीद, डॉ. शंकर सुमन, डॉ. शंकर शर्मा, अलका दास सहित बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी उपस्थित थे।
पटना संग्रहालय में आयोजित कैथी लिपी में ज्ञान की वर्तमान स्थिति पर कार्यशाला में उपस्थित गणमान्य लोग।
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