Publish Date:Sun, 03 Dec 2017 03:02 AM (IST) | Updated Date:Sun, 03 Dec 2017 03:02 AM (IST
बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के सभागार में प्रभा खेतान फाउंडेशन एवं मसि द्वारा 'आखर' का आयोजन
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के रहने वाले सौरभ पांडेय अपनी रचनाओं के लिए जाने जाते रहे हैं। गंभीर साहित्यकार होने के साथ-साथ एक नेक दिल इंसान भी हैं। लगातार 25 वर्षो से लेखन के क्षेत्र में वे सक्रिय रहे। गजल, गीत-नवगीत लिखने के साथ भोजपुरी भाषा के साथ ¨हदी भाषा पर सौरभ अच्छी पकड़ रखते हैं। युवा लेखक डॉ. जितेंद्र वर्मा सौरभ पांडेय के बारे में दर्शकों को अवगत करा रहे थे। शनिवार को बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के सभागार में प्रभा खेतान फाउंडेशन एवं मसि द्वारा 'आखर' एवं श्री श्री सिमेंट की ओर से प्रस्तुत भोजपुरी भाषा पर परिचर्चा के दौरान लेखक सौरभ पांडेय ने भोजुपरी भाषा साहित्य पर अपनी बात रखी।
प्रचार माध्यम से हो रहीं सपाट रचनाएं - पांडेय ने भाषा-साहित्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बेहतर शिल्प के साथ ही बेहतर रचना का निर्माण किया जा सकता है। साहित्य को प्रचार का माध्यम बनाने से सपाट रचनाएं की जाने लगी हैं। साहित्यकार के बारे में लोगों को अवगत कराते हुए कहा कि तीन प्रकार के साहित्य होते हैं। पहला साहित्यकार जन्मजात होता है जो जन्म से ही प्रतिभा की धनी होता है। दूसरा साहित्यकार अध्ययन और शोध से बनता है और तीसरा साहित्यकारों के साथ रहने और उनकी रचनाओं को पढ़ने के बाद उनके अंदर का साहित्य जागता है और लेखक बन जाता है। पांडेय ने कहा कि साहित्य के निर्माण में वातावरण का खास प्रभाव होता है। साहित्य के प्रति अपना रुझान व्यक्त करते हुए कहा कि गांव और घर में पढ़ने-लिखने का वातावरण था। गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित 'कल्याण' पत्रिका आती थी जिसे पढ़ने का अवसर मिला। नाना ¨हदी विद्यापीठ देवघर में थे उनसे भी बहुत कुछ सीखने को मिला और इस प्रकार कहानी, कविता, गजल लिखने की ललक पैदा हो गई। पांडेय ने कहा कि नाना ¨हदी व भोजपुरी में लिखते थे उनकी रचनाओं को पढ़ने से बहुत कुछ समझने को मिला। लिखने-पढ़ने का सिलसिला शुरू हुआ जो अब तक जारी है। पांडेय ने कहा कि कॉपरेट सेक्टर में काम करने के दौरान अपने आप को ऐसा बनाया कि अपनी भाषा में लिखते रहे।
संक्रमण काल से गुजर रही मातृभाषा - पांडेय ने कहा कि जिस भाषा में हम बोलते है वही हमारी मातृभाषा है। जो लोग मगही, भोजपुरी, अंगिका, मैथिली आदि कोई भी अन्य भाषा में बोलता है वह उसकी मातृभाषा होती है। ऐसे में सारी मातृभाषा संक्रमण के दौर से गुजर रही है। लोग अपनी भाषा को छोड़कर दूसरी अन्य भाषाओं में रचनाओं का निर्माण कर रहे हैं। ऐसे में हम अपनी परंपरा से दूर होते जा रहे हैं। भाषा में गड़बड़ी हो रही है शब्द के मायने बदल जा रहे हैं। पांडेय ने कहा कि भोजपुरी भाषा मूल रूप से गवई भाषा है। लोक भाषा के मूल में गीत है। भोजपुरी में रचनाशीलता का प्रमाण सदी में गुरु गोरखनाथ से मिलता है। नाथ पंथ के समय से ही भोजपुरी भाषा का समावेश देखने को मिलता रहा है। पांडेय ने कहा कि ¨हदी भाषा के मूल में मगही, मैथिली, भोजपुरी अन्य भाषाओं का आधार लिया गया है।
अच्छे लोग भाषा को लेकर कर रहे हैं काम - भोजपुरी भाषा में बन रही अश्लील फिल्मों के बारे में कहा कुछ लोग अपनी परंपरा से दूर हटकर कुछ अलग करना चाह रहे हैं। ऐसे में भाषा की छवि धूमिल हो रही है। कुछ ऐसे लोग हैं जो अपनी परंपरा को बचाने के लिए काम कर रहे है। मौके पर पद्मश्री डॉ. ऊषा किरण खान, ऋषिकेश सुलभ, प्रो. ब्रजकिशोर, सुशील कुमार भारद्वाज, सत्यम कुमार झा आदि मौजूद थे। धन्यवाद ज्ञापन प्रभा खेतान फाउंडेशन की आराधना प्रधान ने किया।
By Jagran
https://www.jagran.com/bihar/patna-city-compositions-are-better-than-better-words-17138414.html
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.