Posted on April 16, 2017 by प्रकाश राज, एडिटर इन चीफ , टुडे बिहार न्यूज़ द्वारा खबर प्रेषित
गंवई भाषा(अंगिका) में गाये जाने वाले भगैत को दिया गया साहित्यिक रूप
कुन्दन घोषईवाला / टुडे बिहार न्यूज
(चरवाहाधाम पचरासी का नाम आज राष्ट्रीय फलक तक पहुँच चुका है। आखिर कैसे संभव हुआ यहाँ तक का मुकाम…?सफरनामे की पहली कड़ी में आपने नेताओं की भूमिका को पढ़ा और जाना। आज हम सफरनामा के दूसरी कड़ी में साहित्यकारों की महती भूमिका पर चर्चा करेंगे।)
बाबा विशुराउत का जन्मकाल मुगल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला यानी 18वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध(1719ई०) में बताया जाता है। गौरतलब है कि कलांतर की इस लोकगाथा को गंगा-कोसी की अविरल बहती धारा,नाव,जंगली जानवर, मवेशी, पेड़-पौधों, झाड़ी-झुरमुट आदि के अलावे किसी ने नहीं देखा या सुना है। उनकी वीरगाथा व पशुप्रेम का गुणगान आजतक सिर्फ उन्हीं के पदचिन्हों पर चलने वाले धोरई (चरवाहा) के द्वारा अपने लोकगीतों,भगैतों, भोर, ठेठी आदि के माध्यम से गंवई भाषा (अंगिका) में गा-गाकर, उनकी कथा को किस्सा-कहानी में पिरोकर पिछले करीब 400वर्षों से आजतक पीढ़ी-दर-पीढ़ी लगातार गा-गाकर अक्षुण्ण बनाये रखा गया था।
बंधुओं! गंवई भाषा में गाये जाने वाले इन लोकगीतों, भगैतों को पिछले कुछ दशक पहले तक शिक्षित वर्गों द्वारा नजरअंदाज भी किया जाता रहा। साथ ही,उनकी जीवन गाथा को किसी इतिहासकारों द्वारा वास्तविकता में सरजमीं पर उतारना भी संभव नहीं था। क्योंकि इतिहास को संजोने वाले इतिहासकार तथ्य और कथ्य के आधार पर ही तो लिखित इतिहास तैयार करते हैं। खासकर, कोसी के इस बाढ़ग्रस्त इलाकों और पूर्व में घनघोर जंगल तथा निर्जन स्थान पर घटित प्राचीन कहानी या लोकगाथा को आधार बना कर उसे संकलित कर साहित्यिक भाषा में पिरोकर आम जनमानस में प्रसारित व प्रचारित करना निश्चित रूप से दुस्कर और कठिन तपस्या की तरह ही रहा होगा।इस कठिन व महान कार्यों को भी इस इलाके के कुछ जुनूनी कलमवीरों ने कर दिखाया।परिणामस्वरूप आज लोकदेवता बाबा विशु राउत की गाथा आमजनमानस के बीच पुस्तक के तौर पर सरल भाषा में पढ़ने के लिये उपलब्ध हो पाई। जिसे आम शिक्षित वर्गों ने भी खूब सराहा।खुशी की बात तो यह है कि आज एक लोकदेवता/चरवाहे की समाधी स्थल “चरवाहाधाम” बन कर राष्ट्रीय फलक पर भी अपनी पहचान और उपस्थिति का डंका बजा रहा है।
चरवाहाधाम से संबंधित पाठ्य पुस्तक
👉 लोकदेवता बाबा विशुराउत के अलिखित इतिहास को लिखित इतिहास में बदलने का साहसी व चुनौतीपूर्ण कदम सबसे पहले वर्ष 1990-91ई० के दौरान डॉ० रमेश मोहन शर्मा ‘आत्मविश्वास’ ने अपने लिखित पुस्तक “लोक गाथा बाबा बिसुरॉय” का प्रकाशन कर किया।उन्हें इस पुस्तक के लेखन व प्रकाशन के आधार पर तिलकामांझी विश्वविद्यालय,भागलपुर द्वारा पी.एच.डी का सम्मान देकर सम्मानित भी किया गया।IMG-20170417-WA0009
👉बाबा विशु राउत के जीवनी पर दूसरी पुस्तक वर्ष 1998 में नाटककार प्रमोद कुमार सूरज के द्वारा-“लोकदेव विशुराउत” लिखी गई।
👉लेकिन,2010 में लेखक विनोद आजाद द्वारा लिखित व बेहद ही सरल भाषा में प्रकाशित पुस्तक “चरवाहाधाम पचरासी” ने आमजनों के बीच अपनी सबसे ज्यादा पहुँच व पैठ बनाई।उक्त पुस्तक को 14अप्रैल2010 में तत्कालीन जिला पदाधिकारी डॉ० विरेन्द्र प्र० यादव के द्वारा पचरासी मेला पहुँच कर लोकार्पण किया गया।विनोद आजाद द्वारा लिखित इस पुस्तक का आज की तिथि में मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहँच जाना निश्चित रूप से खासा महत्व रखता है।
👉इसके अलावे,डॉ० विनय कुमार चौधरी के द्वारा भी “सुन हो भइया लोक जहान” नामक पुस्तक का लेखन किया गया, जो कि एक अंगिका काव्य संग्रह है।
👉वहीं,बाबा विशु राउत महाविद्यालय चौसा के प्राचार्य प्रो० उत्तम कुमार के द्वारा भी लिखित पुस्तक “बाबा विशु राउत चालीसा” प्रकाशित करवाई गई है।
इसके अलावे भी लोकदेवता बाबा विशु राउत तथा चरवाहाधाम पचरासी को राष्ट्रीय फलक पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका के तौर पर कई महत्वपूर्ण आलेख व चर्चाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से कई महान हस्तियों,लेखकों व पत्रकारों के द्वारा समय-समय पर प्रकाशित की जाती रही हैं। डॉ०शुगन पासवान (मधेपुरा के तत्कालीन डी.एस.पी)के द्वारा भी “आलमनगर का इतिहास” स्मारिका में बाबा विशु राउत की चर्चाएँ की है। मधेपुरा के तत्कालीन ए.डी.एम डॉ० प्रभू नारायण विद्यार्थी द्वारा लिखित “मधेपुरा का अतीत और वर्तमान” पुस्तक में भी इनकी चर्चाएँ की गई हैं।इनके अलावे प्रो०डॉ० लक्ष्मी नारायण श्रीवास्तव द्वारा लिखित पुस्तक “मिथिला संस्कृति कोष” में भी चर्चाएँ की गई हैं।वहीं खगड़िया के मूल निवासी डी.एस.पी पद पर आसीन चंद्र प्रकाश जगप्रिय की पुस्तक “अंगिका लोकगाथा” में भी बाबा विशु राउत का आलेख आया है। *लोकदेवता बाबा विशु राउत चरवाहाधाम पचरासी* के नाम को बढ़ाने के लिये लौआलगान के कलाकार “मित्तो मवाली” द्वारा विडियो “पचरासीधाम बड़ी महान”भी निर्माण किया गया है तथा फुलौत के कलाकार गोपाल राधे-राधे द्वारा फिल्म बनाने की योजनाओं पर भी कार्य चल रहा है।
(चरवाहाधाम पचरासी को राष्ट्रीय फलक तक चर्चा में लाने में किन-किन पत्रकारों द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई है पढ़े- सफरनामा के तृतीय किस्त में। जुड़े रहे हमारे साथ-टुडे बिहार न्यूज के साथ।)
(https://todaybiharnews1.wordpress.com/2017/04/16/मधेपुराचरवाहाधाम-पचरास-2/ से साभार)
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