डेढ़ सौ वर्ष पुराने मुकुट धारण करते हैं राम
Publish Date:Thu, 21 Sep 2017 02:02 AM (IST) | Updated Date:Thu, 21 Sep 2017 02:02 AM (IST)
भागलपुर [मिहिर सिन्हा]
नाथनगर के गोलदारपट्टी स्थित रामलीला के मंच पर राम व सीता डेढ़ सौ साल पुराने मुकुट को धारण करते हैं। बनारस से इसे भगत परिवार के पूर्वजों ने मंगवाया था। जिसे आज भी सुरक्षित रखने का प्रयास किया जा रहा है। मोटे कागज व लाल कपड़े पर चांदी के तार की कढ़ाई वाला यह मुकुट काफी आकर्षक है। यही कारण है कि इसे देखकर कोई भी इसकी तारीफ किए बिना नहीं रह पाता है। रामलीला आरंभ होने से पहले इस मुकुट की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है।
बनारस से मंगवाया गया था मुकुट
रामलीला समिति के संरक्षक रविंद्र भगत कहते हैं कि हमारी भाषा भोजपुरी है, लेकिन हमें अंगिका ने प्रेम से अपना बना लिया। रामलीला में दोनों भाषाओं की छाप देखी जा सकती है। रामलीला में पोशाक का महत्व अधिक होता हैं। हमारे पूर्वजों ने करीब एक सौ पचास साल पहले बनारस से मुकुट मंगवाया था। मुकुट में हाथ से कारीगरी की गई है जो आज भी आकर्षक दिखती है।
सुरक्षित रखने के लिए अब एक बार ही किया जाता है उपयोग
रविंद्र भगत कहते हैं कि यह हमारी ऐतिहासिक धरोहर है, इसलिए इसे संभालने का भी प्रयास किया जा रहा है। कुछ साल से इस मुकुट का उपयोग सिर्फ एक बार ही किया जाता हैं। इसे राम-सीता का रोल लेने वाले कलाकारों को पहना कर पूजा की जाती है। उपयोग के बाद इसे सुरक्षित रख दिया जाता है। कागज का मुकुट होने के कारण अब यह फटने लगा है। इसकी मरम्मत करने के लिए यहां कलाकार नहीं मिल पा रहे हैं। इस वजह से इस धरोहर को सुरक्षित रखना चुनौती बन गई है।
रोचक है रामलीला का इतिहास
बताया जाता है कि एक सौ पचास साल पहले बक्सर, भोजपुर व आरा समेत कई जगहों से भगत परिवार नाथनगर आकर बस गया। ये लोग अपने दिल में राम के प्रति समर्पण व रामलीला की संस्कृति लेकर आए। उसी वक्त से गोलदारपट्टी में रामलीला का मंचन आरंभ हुआ जो आज भी जारी है। पूर्व में बेगूसराय, मधुबनी व दरभंगा की रामलीला मंडली यहां अपनी प्रस्तुति देने आया करती थी। लेकिन धीरे-धीरे यहां के कलाकारों ने भी रामलीला को अपना लिया।
रविंद्र कहते हैं कि वर्ष 1846 में हमारे पूर्वजों के कदम नाथनगर में पड़े थे। हमलोग वर्तमान में आरा जिले के खीरी मुखराव गांव के रहने वाले हैं। यहां सबसे पहले सिवरत भगत, ग्यादिन भगत व रामदास भगत पहुंचे थे। इन तीनों के बाद आरा समेत कई इलाकों से लोग धीरे-धीरे आने लगे। आज हमारी बस्ती बस गई जिसे गोलदारपट्टी के नाम से जाना जाता है।
उनका कहना है कि पहले दूसरे जिले से रामलीला के कलाकार आते थे। पर धीरे-धीरे नाथनगर अजमैरीपुर में रहने वाले कलाकारों ने रामलीला को जानना व समझना आरंभ किया। आज यही लोग रामलीला करते हैं। किसी भी वर्ष यहां की रामलीला बंद नहीं हुई। धीरे-धीरे स्थानीय लोगों ने भी सहयोग करना आरंभ किया। आज यह रामलीला दुर्गा पूजा के दौरान विशेष आकर्षण के रूप में सामने आ गया।
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