- बासुकी पासवान -
*”यदुनंदन जी” जिसने अंग भूमि की माटी को अपने सूरो मे उतारा ।
*यदुनंदन के गीतो ने दी थी अंग भूमि को सम्मान ।
* वह ताउम्र गाता रहा ,गुनगुनाता रहा
* भूला दिये गये , अंगिका के पहले गीतकार
* एच एम भी मे हुई थी उनके गीतो की रिकाॅडिंग
बहुत कठिन है यदुनंदन को भूलना , अंग भूमि का वह जनगीत गाता और गुनगुनाता , अंगिका साहित्य की आत्मा में उनके गीतों की गूंज आज भी हैं। भले अंगिका साहित्यकार उन्हें याद न करें, जैसा कि आज तक हो रहा है। वह बेशक जमालपुर (मुंगेर) के एक गरीब परिवार मे पैदा हुआ लेकिन ताउम्र उसने अंगिका को उॅचाईयों तक पहुचाने का काम किया। उसने हजारो गीतो की रचना की , बिल्कुल गंवई और ठेठ। उनके गीतो मे खेत खलिहान , रोजी रोजगार, धान के खेत, गेहूं की बलिया, माॅ की ममता का आॅचल और भाभी के प्रति मातुल्य असीम लगाव छलकता था। यदुनंदन मंडल न केवल अंग प्रदेश बल्कि उस दौर के ऐसे गीतकार और गायक थे जिसका आंचलिक भाषा के काव्य रचना मे कोई तुलना नहीं था । उस जमाने में मीडिया का प्रचार प्रसार आज के दौर जैसा बेहतर होता तो बेशक यदुनंदन मंडल को सरहद पार तक लोग जानते , ऐसा नही कि उनकी गायकी को सम्मान नही मिला, साठ के दशक मे उनके गीतो की रिकाॅडिग एच एम भी के रिकाडॅ प्लेयर मे हुई; उनके पास बार-बार रिकाॅडिंग कराने के लिये किराये के पैसे भाड़ा नही होते थे। वे अपना दु:ख किसी से नही कहते थे। बस एकबार उनके गीत को सुनता कह उठता यह तो अंग की माटी का तानसेन हैं । वे अपने गीत से दीपक जलाते थे ,धान और गेहूं की बालियां झूमने लगती थी ,देवर भाभी के रिस्ते की ताप माॅ के आॅचल का एहसास करा देती थी ; यदुनंदन जी की कल्पना करनी हो तो देश के प्रख्यात समाजवादी चिंतक डा0 राम मनोहर लोहिया की चेहरे को याद कीजिये। बस अंतर यही था कि खद्दर के बजाय गेरूआ कपडे पहना करते थे। बिल्कुल सन्यासी भेष में। यदुनंदन मंडल न केवल अंग प्रदेश की संस्कृति का तिलक अपने माथे पर लगाया बल्कि अंग की माटी को सुरीले शब्दों मे घोलकर पिया और सुरों मे उतारा । ट्रेन हो या फिर प्लेटफॉर्म या कि हटिया निकल पड़ते अपने साहित्य साधना को सुर देने। अंग जनपद की विहंगम संस्कृति का उदघोष करने , ओजस्वी चेहरा और पूरा विदुषक , जो गीत गाते गाते खुद भी रो पडता था और सुनने बाले के आॅख से भी आॅसू के बूंदे टपका देता। बात बेकारी, गरीबी और पेट की आग की हो, पाकिस्तान या चीन के साथ जंग, यदुनंदन जी अपने गीत के माध्यम से अंग जनपद का योध्दा बनकर कूद पडता था, गीतों से अलख जगाने का नाम ही यदुनंदन जी थे या यूँ कहें वे अंंगिका गीतों के राजकुमार थे। डंटा मे बॅधा घुंघरू की आवाज शमाॅ बाॅध देता था। उन दिनों जमालपुर के केशोपुर के सुवह टूटी फूटी झोपड़़ी से निकल एक झोला मे अंगिका के गीतो के बुकलेट भरकर निकल पडता और गीत गा- गा दस पैसे मे एक प्रति बेचकर शाम घर लौटता ।
यदुनंदन जी अंगिका के पहले गीतकार थे, जिनके गीत रिकाडॅ प्लेयर मे हुई। वह प्लेयर आज सम्भवत: मिलना मुश्किल हो लेकिन बताते चलें कि उनके अमर गीतों की चोरी भी बड़ी बेर्शमी के साथ हुई और बिहार की मशहूर गायिका ने उनके गीत को भूनाकर लाखो रूपये बटोरे और उनका नाम मंच से कभी नही लिया। उनके परिवार से उनके गीतो की राॅल्टी छीनने का संघीय अपराध किया। आज भी अंग प्रदेश के गाॅव मे उनके मशहूर गीत ” सैया रे मत कर दूर , परवल बैचे जैबे भागलपुर” को गाया जाता है । नई पीढी के लोग आज भी इस गीत को एक गायिका की आवाज मे सुन सकते हैं। इस जानकारी का मतलब कतई यह निकाला जाना चाहिए कि कम से कम उस गीतकार का नाम अपने कैसेट मे जरूर देना चाहिए।
श्रमिक गाड़ी जो रेल कारखाना, जमालपुर के कर्मचारियों के लिए कजरा,मुंगेर,सुल्तानगंज से चलती थी और फिलहाल बंद हो गया उन श्रमिक गााड़ी (कुली गाड़ी) अंग भूमि की पीडा कोअपने सुरो के साथ पिरोया-
एक वानगी –
*हेगै बडकी भौजी अगै कुली गाडी आईल गे ।
चार पैसा के सतुआ भौजी ,आधा गो प्याज गे ।
पत्थर फोडै जैबै भौजी जमालपुर पहाड गे ।
हेगै बडकी भौजी अगै कुली गाडी आईल गे ।
यदुनंदन जी इन गीतो के माध्यम से गाॅव के मजदूर और भौजी के मातुल्य रिस्ते को सामने रखा ।
* भोला बाबा हो , पूरा न होलै हमरौ मन के आस ।
मैटरिक हम फेल कर गेलियै ,दुल्हिन हो गैलै पास ।
* हेगे बडकी ,हेगे छोटकी तोरो सैय्या मिललौ गॅवार गे ।
तोरो सैय्या बंगला पर सूतो , तोरो जबनियाॅ बामेकारगे ।
* हे हो डाक्टर बाबू बीमार पडल बकरी
खाय के रहै घास भूसा , खाय गैलै लकडी
हे0 –
* माघी पूणिंमा के मेला है , जैबे गंगा नहाय
सैय्या से ठगबै रूपैया हे जैबे गंगा नहाय ।
* हेगे छोटकी , हमै न जानलियो कि
मेलबा मे हेराईयै जैबै गे छोटकी ।
अगै मडुआ के रोटियाॅ ,पोठिया मछरिया
कै खिलैतै गे छोटकी ।
* मोर भौजी तोर बहनियाॅ के दोतल्ला मकान
* अंडा गरम से ठंडा हो गया पाकिस्तान का
पापी उस शैतान का ना ।
* हेरू दियरा पहलै भस गये भस गये फैरदा गाॅव
भसल जाय छै गाॅवो के दुल्हनियाॅ , कैसे सुधरी ।
यदुनंदन जी ने अंगिका में ऐसे गीत लिखे ताकि अंगिका को पहचान मिले। लेकिन नियति ने इस महान गीतकार को अपने ही माटी से जुदा कर दिया । 10अप्रैल 1988 को इस अंग की धरती को अलविदा कह दिये ।
उनके पुत्र राधेश्याम जी कहना है कि बाबू जी को भूलाना आसान है लेकिन उनके गीतो को भूलाना आसान नही है । अंगिका के नाम पर यदुनंदन जी ने जो अलख जगाया उस जब्बे को सलाम ! जय अंग प्रदेश -जय अंगिका !
(Source : http://charchaakhas.com/2018/02/15/अंगिका-गीत-को-स्वर-देने-वा/ )
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